
चारों तरफ से अंधकार घिर गया.... जंगल के किनारे सभी सदस्यों के तम्बू के बाहर लकड़ी की मशालें जल उठीं और दो बंदूकधारी सैनिक अपनी सर्विस राईफल लेकर कैंप के चारों तरफ गश्त कर रहें थें ताकि वह अपनें साथियों की सुरक्षा जंगली जानवरों से कर सकें। तभी जाॅन वाॅटसन के कैंप में उसके साथ अगलें दिन के कार्यों पर विचार-विमर्श करनें लगा।
अचानक वह शाम के समय घटी घटना को बातों-बातों में जाॅन से पूंछने लगा। शायद वह उसकें मन को टटोलना चाहता था ताकि यह पक्का हो सकें कि वह अब स्वास्थ्य हो चुका है और आगें के सफ़र के लिए तैयार है अथवा नही?
इससे पहले की जॉन कुछ करता वाटसन ने उससे पूछ लिया, तुम उस समय सिक्के को देखकर क्यों डर गए थे?
तुम नही जानते वो सिक्का 'शापित' है। ऐसा मैने अपने मेजर से सुना था। तुम विश्वास नही करोगे पर यही सिक्का कल रात को एडकिन्सन के पास भी था और तुम जानते हो उनके साथ क्या हुआ। वही इस दल के मुखिया थे।
वाॅटसन ने जॉन को शक भरी निगाहों से देखा,उसें लग रहा था, जाॅन की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए वह एडंकिचन के साथ हुई घटना को जबरदस्ती किसी ऐसी चीज़ से जोड़ रहा है जिस पर उसे खुद भी विश्वास नही है।
वाॅटसन, तुम जानतें नही हो; ये दुनिया कितनी रहस्यमयी है। मैं यकीन से कह सकता हूँ कि यह सिक्का भी वैसा ही है। अभी कल रात को ही मेंजर ने यह सिक्का एडंकिचन को दिया था और उसकें साथ अचानक इतनी बड़ी दुर्घटना हो गयी। दुनिया का हर कोना किसी न किसी रहस्य को अपनें में समायें है।
हा,यह बात तो सच है। परंतु जो हुआ वह बस एक संयोग भी हो सकता है और कुछ नही...।
जब सब लोग नींद के आगोश में सो गयें थें, तब डा० sis अपनें तम्बू से बाहर आयें और वहाँ चहलकदमी करतें हुए कुछ बड़बड़ानें लगा। कुछ देर बाद उसनें अपनी जेंब से वह सिक्का निकाला और एक पेड़ के नीचें बैठकर उसें निहारनें लगा। वह सिक्का भी उन्हें अपनी ओर आकर्षित करनें लगा और वह उसमें खोनें लगें। उन्हें ज़रा भी आभास नही था कि वह सिक्का उनकें मन से खेल रहा है। धीरे-धीरे वह सिक्का चमकनें लगा और वह उस घनघोर अंधेरी रात में ऐसी चमक बिखेरा रहा था मानो वह कोई जुगनु हो। जो एक ही अवस्था में ठहर-सा गया हो। डा० धीरे-धीरे अपनी चेतना खो रहा था और तभी अचानक उसकें आसपास कुछ लाल चमकती हुई आंखे उनकी तरफ बढ़ने लगी और अगलें ही पल उन पर टुट पड़ी। वह पूरी तरह सिक्कें के आगोश में इतना खो चूके थे इसलिए उनकें चारों तरफ क्या हो रहा उन्हें यह भी होश नही रहा।
अगली सुबह जब वाॅटसन की नजर डा०सीस पर पड़ी तो वह एक पेड़ के नीचें बेहोश पड़ा था और उसकें चारों तरफ खून बिखरा था। उसकें शरीर पर जगह-जगह चोट के निशान थें, जो बहुत भद्दे थें और हालात बहुत ही खराब थी। इसलिए वाॅटसन ने अपनें चीखकर अपनें साथियों को बुलाया।
जब उसकें सभी दोस्त वहाँ आ गयें तो, जाॅन की नजर डा०सीस की मुट्ठी में बंद सिक्के पर पड़ी और उसनें वाॅटसन की ओर घुमकर कहा, देखा मैंने पहलें ही कह दिया था। यह सिक्का ही सारी मुसीबतों की जड़ है। जिसकें पास भी यह सिक्का रहता है। उसका नसीब पलट जाता है और उसकी बदकिस्मती शुरू हो जाती हैं।
पहलें तो मुझे, तुम्हारी बातों पर यकीन नही था जाॅन; मुझे लगा तुम यूँ ही अंधविश्वास पाल रहें हो। किन्तु यह देखकर लगता हैं कि वाकई यह सिक्का 'शापित' ही है।
हा, तुम सही कह रहें हो, वाॅटसन। मेरी बात मानों और इस सिक्कें को यही जंगल के किनारे मिट्टी में दबा दो। हो सकता है इससे हमारा पीछा छूट जाए।
मुझे तो ये समझ नही आता कि आखिर यह सिक्का यहाँ आया कैसे? यह तो मेंजर ने एडंकिचन को दिया था।
हो सकता हैं यह हमारे सामान के साथ आ गया होगा।
वो बाद में तय करेंगे अभी तो जैसा मैने कहा वैसा करो।
ठीक है, तुम कहतें हो। तो मैं इसे तुरंत फेंक कर आता हूँ। तब तक दो लोग डा० सीस को किसी चिकित्सक के पास लेकर जाओं। यह कहते हुए वाॅटसन वह सिक्का लेकर उसे मिट्टी में दबानें को चल दिया।

इधर दूसरी तरफ बिट्रिश मुख्यालय में अगली सुबह एडंकिचन अपनें मेंजर से परमिशन लेकर उस गाँव की ओर निकल गया जहाँ से उन्हें वह शापित सिक्का मिला था। यमुना नदी को वह दूनघाटी पहुंचा जहाँ उसने मेंजर के बतायें अनुसार उस गाँव को ढुढ़ लिया।
उस गाँव में जाकर उसनें उस घर को भी ढूंढ लिया जहाँ से वह सिक्का मेजर को मिला था। उस घर में एक किसान रहता था। उसका नाम चंद्रचूड़ था।
हैलों, कोई घर पर है क्या??
हा , कहिए श्री मान। क्या काम है?
मैं एक विशेष काम हैं, मैं वो शापित सिक्कें के बारें में जानना चाहता हूँ।
किस सिक्कें की बात कर रहें है आप।
वहीं जो परसों मेंजर adms तुम्हारे यहाँ से कर के रूप में ले गये।
ओ! तो वो मायावी सिक्का।
हाँ, वही।
वह सिक्का मेंरे पिताजी को तपसा घाटी में खुदाई के दौरान मिला था। उस समय वहाँ पर दो गाँव को मिलानें वाली पगडंडी बनायी जा रहा थी। वह सिक्का लेकर जब मेंरे पिताजी घर आयें तो वह सिक्का सोनें का नही था, ब्लकि तीन चक्रों वाला एक छल्ला था जो क्रमशः वायु ,जल और आकाश का प्रतिनिधित्व करता था। सीधे शब्दों में वह एक ऐसा सिक्का था जो भूतिया था। दिन में तो वह सिक्का सामान्य रहता था, पर सूर्यास्त के बाद वह अपनें सबसे करीबी व्यक्ति को अपनें वश में करता था। उस समय तो ऐसा लगता था कि इस सिक्कें में कोई रहस्यमयी शाक्ति है। जो किसी को भी पल भर में आकर्षित करनें की क्षमता रखता था। आकर्षित करनें के बाद जब कोई उसकें करीब जाता था। तो ऐसा लगता था मानों कोई गला दबा रहा है।
ऐसी ही एक घटना जिसें याद करके मेरी आंखों की नीद उड़ जाती है।

एक बार जब मेंरे पिताजी घर पर नहीं थें। मेरी माँ और मेरा छोटा भाई ही यहाँ थें। उस बादलों का रूख भंयकर था, तेज हवा चल रही थी। जैसें ही हम खाना खाकर सो गये। अचानक आधी रात को उस कमरें से खटपट होंने लगी। उस रात मैं कमरें के बिल्कुल बगल वालें कमरें में सो रहा था वो भी एकदम अकेला।
खटपट की अवाज सूनकर मैंने उठकर उधर झांका तो पाया कि एक बड़ा सा कालें रंग का लाल आंखों वाला साया उस कमरें में चहलकदमी कर रहा था। जिसें देखकर मैं बेहोश हो गया। कुछ दिन तक बिमार रहा। उसके बाद उस सिक्कें को मेंरे पिता ने गलवाकर उस पर सोनें की परत चढावा दी और मंत्रों से उसे कीलित करवा दिया था। क्योंकि सोना सबसे शुद्ध धातु है और उससे नकारात्मक शाक्तियां हावी नही हो सकती। तबसे वह एकदम शांत था। पर परसों मेंजर ने मेरी एक ना सूनी और वह उस सिक्कें को ही उठाकर ले गया।
ओ! तभी मुझे परसों ऐसा एहसास हुआ था।
क्या अहसास हुआ तुम्हें, पर वह तो मंत्रों से कीलित है। जब तक उस सिक्कें से कोई छेडछाड नही करता तब तक वह कुछ भी नही कर सकता।
वो, हाँ जाॅन ने उसे रगड़कर देखा था। उस समय तो वह एकदम ठीक था।
अगर रंगड़ने से कुछ भी असर हुआ होगा तो याद रखना कई अतृप्त आत्माओं का वास उसमें हो जायेगा। क्योंकि वह सिक्का उन्हीं तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है। वह मनुष्यों और आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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