आप कभी हाईवे से गए है, जो दिन में तो गड़ियों से खचा-खच भरा हुआ और रात में बिल्कुल नीरव और सुनसान एक अलग- सा खौफ लिए होता है। शहर से सुदूरतम लगभग सभी हाईवे ऐसे ही हैं।जहां दिन में भी हाईवे पर हादसे होते रहते है और कई सारे लोग ऑन-द -स्पॉट मर जाते हैं। इस तरह हर सूरज की लालिमा के साथ शुरु होती है। एक डर की कहानी जो दिन ढ़लने के साथ ही उसमें एक नया अध्यय स्वतः जुड़ता ही चला जाता है।हमारे देश में वैसे तो कई प्रेत -बाधित हाइवे है; पर यह जो कहानी मैं लेकर आया हूं।एक ऐसे ही हाईवे की कहानी जिससे सूर्यास्त के बाद लोग जाने से भी कतराते हैं। खौफ़ और दहशत से भरी काहानी। हम सात दोस्त का एक ग्रुप था। जिमसें रोहन सेमवाल, राजू रावत, कमलेश पैन्यूली, रोनी आहूजा, श्याम नारायण, हितेश सोढ़ी, टीनु भटनागर देहरादून के डी. ए. वी. कॉलेज देहरादून से स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे।हम सभी आर्ट्स से स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे और सभी अंतिम वर्ष में थे। सभी दोस्त दोस्त बहुत अच्छे घरानों से ताल्लुकात रखते थे। किसी के पापा मशहूर बिजनेसमैन, तो किसी के प्रधानाचार्...