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रहस्यमयी घाटी। (सच्ची भूतिया घटना - भाग -5 )


एडंकिचन-

ओह! तभी परसों मुझे कैंप से निकलतें समय एक धक्का लगा जिससें मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं लुढ़ककर बुरी तरह घायल हो गया और तभी से वह सिक्का कहीं गायब हो गया। मैंने बहुत खोजा पर वह कहीं नही मिला।


तो फिर, अब वह सिक्का कहाँ है? चंद्रचूड़ ने चिल्लाते हुए कहा।


एडंकिचन-

पता नही,हमनें बहुत खोज की पर वह कहीं-नही मिला।


चंद्रचूड़-

क्या! ऐसें कैसे, तुम नही जानतें वह अब कितना खतरनाक हो जायेगा। अब उसमें एक साथ कई अतृप्त आत्माओं का वास हो जायेगा और अगर ऐसा हो गया तो कोई भी कुछ नही कर पायेगा, हमें यह सब रोकना होगा।


एडंकिचन-

इसे कैसें रोक सकतें है चंद्रचूड़?


चंद्रचूड़-

इसके लिए हमें वह सिक्का ढूँढना होगा और फिर से मंत्रों से अभिमंत्रित करके वापिस रखना होगा।


एडंकिचन-

चलों फिर तो हमें उसे शीघ्र ढूढ़ना होगा।


चंद्रचूड़-

अगर वह सिक्का तुम्हारे पास नही तो कहीँ ऐसा तो नही किसी ने चुरा लिया हो।


एडंकिचन-

नही, पर हो सकता है परसों जो टुकड़ी रहस्यमयी घाटी की खोज करनें गयी थी। शायद उनमें से कोई ले गया हो।


चंद्रचूड़-

हा, हमें शीघ्र उन तक पहुचना होगा।


इधर सुबह जाॅन और उसकें साथी डाक्टर सीस को नजदीकी गाँव में एक नाड़ी वैद्य के यहाँ लेकर गयें क्योंकि उस समय भारत में आयुर्वेद व नाड़ी वैद्य ही लोगों का इलाज करतें थें। नाड़ी वैद्य वे लोग होतें है जो मनुष्य के नसों में रक्त के प्रवाह गाति से यह पता लगा लेतें है कि सामनें वालें व्यक्ति को वाकई में क्या दिक्कत है। जाॅन और उसकें साथी अपनें कैंप को बांधकर जंगल की तरफ बढ़ गये। दिनभर चलनें के बाद वे एक नदी घाटी क्षेत्र में पहुँचे जहाँ दूर-दूर तक कोई नही था। वह सब पहाडों की खड़ी चढाई को पार करके नदी घाटी क्षेत्र में पहुँचे। वहाँ उन्हें बहुत सारे अलग-अलग किस्म के शिलालेख मिलें। जो कई शताब्दी पहलें के लग रहें थें। जाॅन और उसकें साथी खुश थें। उन्होंने इतिहास की एक सबसे कीमती सभ्यता की खोज कर ली थी। कहतें हैं मानवीय सभ्यता की शुरुआत के सबसे अधिक साक्ष्य नदियों से ही मिलती है।


velly
जाॅन-

वाॅटसन, my friend u r so lucky for me.


वाॅटसन-

थैंक्स जाॅन, मै भी खुश हूं। हम एक नयी खोज कर लेंगे। अब हमें जल्दी एक नयी उपाधि मिलेंगी वह भी पर्वतारोही एडंकिचन के बिना।


जाॅन-

सैनिकों आज रात का तम्बू यही लगाओ। इस नदी के किनारे, यहाँ पर दो फायदे है एक तो पानी नजदीक है और दूसरा कैम्प के नजदीक अगर कोई जानवर आया तो उसकें पदचाप नदी में सुनाई देंगे।


river-side
वाॅटसन-

ठीक है। तुम्हारी बात को मैं समझ गया। कल ही हम मेंजर adms को यह खुश खबरी देंगे और वह हमसे खुश हो जायेंगें।


जाॅन-

oh, yes my friend.


जाॅन और उसके साथी ने नदी के किनारे ही कैम्प लगया। मसालें कैम्पों के बाहर जलाई गई पर वे सब नही जानतें थें कि यह घाटी कोई आम घाटी नही है। इस घाटी के रहस्यों वे बेखबर थें। रात को जब सब सो रहें थें। तो अचानक आसमान का रंग परिवर्तत होंने लगा। कालें भंयकर बादल आसमान में मड़राने लगें। आकशीय बिजली अपनें चरम पर मौसम को भयावह बना रही थी। अचानक बिजली घाटी के किनारें बनें मिट्टी के एक टीले पर पड़ी और जाॅन और उसकें साथियों ने खुद को असहाय पाया। न उनकी बंदूकों ने काम किया ना ही उनकें मस्तिष्क ने। इससे पहले वह कुछ कर पातें उनका टैट़ उड़ गया और उनकी रहस्यमयी तरीकें से मौत हो गयी...।

river-side
जून 2015।

ओ! विवेक चल यहाँ से लाइब्रेरी बंद होंने का समय हो गया है। कल दुबारा आकर इस भूतिया किताब को पढ़ लेना। यह कहकर विपिन काॅलेज लाइब्रेरी में अपनें कोर्स की बुक जमा करानें चला गया।


विवेक-

रूक यार मैं आ रहा हूँ, तूने हमेशा की तरह ऐन मौके पर आकर मजा किरकिरा कर दिया मेरा... बस थोड़ी देर और रूक जाता तो तेरा क्या हो जाता।


विपिन-

चल जल्दी कम्पलीट कर, मैं तब तक अपनी बुक जमा कराता हूँ। अगर थोड़ी देर और रूक जाता ना तो जोशी सर आकर अच्छा मजा चखातें तुझे।


विवेक किताब का अगला पेज पलटकर देखता पर ये क्या, आगें के पेज तो खाली है।

विवेक उस किताब को दो-तीन बार अच्छी तरह खंगालता है। कभी आगें से पीछे और कभी पीछे से आगें पर बाकि पन्नों का कुछ पता नही मिलता। इसलिए बुक लेकर लाइब्रेरी इंचार्ज जोशी सर के पास जाता है।


विवेक-

सर, इस किताब के बाकि पन्नें खाली हैं।


जोशी सर-

अरें कौन सी किताब की बात कर रहें हो।


विवेक-

सर, जो ये रहस्यमयी घाटी के नाम से है बुक है उसकें कोई पेज खाली है।


जोशी सर-

ओ! तो तुम उस किताब की बात कर रहें हो, वो एक बस कबाड़ है। एक अंग्रेज उसे कुछ साल पहलें छोड़ गया था।


विवेक-

तो क्या मैं उसे ले जा लूं, सर। अगलें शानिवार को दे दूंगा।


जोशी सर-

देखों लाइब्रेरी का नियम है अगर तुम किताब ले जाना चाहतें हो तो तुम किताब का नाम और अपना नाम लिखकर दें दो। मैं एन्ट्रि राजिस्टर में डिटेल चढ़ा देता हूँ।


विवेक-

ठीक है सर।


जोशी सर-

ओके, पर किताब वापिस लाना मत भूलना।


विपिन-

चल यार,अब अपनें कमरें पर चलतें है।


विपिन और विवेक दोनों एक-दूसरे के पक्कें दोस्त कब बन गयें उन्हें पता ही नही चला। दोनों पहाड़ी अंचलों के रहनें वालें है। एक गढ़वाली तो दूसरा जौनसारी है, संस्कृति दोनों की अलग-अलग है पर मन दोनों का एक जैसा है। विपिन विवेक को अपनें काॅलेज के पहलें दिन की याद दिलाता है।


विपिन-

यार टाईम का पता ही नही चलता, कहाँ वो हमारा पहला दिन था और एक यह आज का दिन।


विवेक-

तुम्हें याद है ना,काॅलेज के पहलें दिन तुम कितना अटक-अटक कर बात कर रहें थें।


विपिन-

तुम भी यह बात मत भूलों कि सर ने पहलें दिन ही तुम्हारे नाम को कुछ और ही पुकारा था और सारी क्लास तुम पर हंस रही थी।


विवेक-

हा, पता है यार। उस दिन मैं और तुम एक साथ कैंटिन गयें थें। तब तुमसे पहली मुलाकात हुई वो भी अमन के साथ।


विपिन-

हा, अमन को तो मैं उसी दिन से जनता हूँ जब उसनें मेरे एडमिशन फार्म भरने में मदद की थी।


विवेक-

हा है तो मस्त आदमी वो। सबकी मदद करता है।


विपिन-

काॅलेज एक सप्ताह के लिए बंद है यार, क्या प्लान है तेरा।


विवेक-

मैं गाँव जाने की सोच रहा हूँ यार।


विपिन-

हा, मैं भी वही सोच रहा हू। चल यार, इस बार तू मेरें गाँव घुमनें चल।


विवेक-

नही यार,अगली बार चलता हूँ ना। इस बार मैं गाँव जाकर आता हूँ। बहुत दिन हो गए गाँव गयें।


विपिन-

तू, हर दो महीने में तो तू अपनें गाँव जाता है, इस बार मेरे गाँव की वादियों को भी देख लें। अमन और संजय भी इस बार मेंरे गाँव चल रहें है साथ में तू भी चल लेता। तो मजा दुगना हो जाता यार।


विवेक-

क्या बात कर रा यार, उन हरामियों ने तो मुझें कहा कि वो इस बार मसूरी जा रहें है।


विपिन-

तो क्या भाई मसूरी मेरे गाँव से दूर थोड़ी है। पहाड़ के इस तरह मेरा गाँव और पीछे की तरफ मसूरी ही तो है। चलता है तो चल, मसूरी के साथ दो-चार जगह और देख लेंगे।


विवेक-

आईडिया तो सही है,पर मैं इस किताब को लेकर आ गया हूँ। इसका क्या करूँ।


विपिन-

बैग में डालकर इसे भी ले चल, हमें कौन सा काम करना है कुछ। जब मन करे तब देख लेना इसें भी।


विवेक-

चल जब तुम सब चल रहें हो तो मैं भी तैयार हूँ यार,खूब मजें करेंगे वहाँ जाकर।


विपिन-

कल सुबह ही निकलेगें। उनकों सुबह ISBT आने को कह देना।


विवेक-

ठीक है यार।



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